Friday, November 14, 2008

पोंटिंग की कप्तानी पर संसद में प्रस्ताव


पिछले सीरिज़ में भारत के हाथों ऑस्ट्रलियाई टीम को 2-0 से हार का सामना करना पड़ा था.
हाल ही में भारत में खेले गए टेस्ट मैचों की सिरीज़ में ऑस्ट्रेलियाई टीम की हार के बाद रिकी पोंटिंग की कप्तानी का सवाल संसद में पहुँच गया है.
भारत में पिछले सप्ताह समाप्त हुए चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ में ऑस्ट्रेलिया की टीम को 2-0 से हार का सामना करना पड़ा था.
ऑस्ट्रेलिया की खेल मंत्री मिशेल ओबरायन ने गुरुवार को पोंटिंग की कप्तानी पर उठ रहे सवालों पर तस्मानिया की संसद में प्रस्ताव रखा है.
हालाँकि वो रिकी पोंटिंग के समर्थन में बोलती रहीं है और उनका संबंध भी उसी शहर से है जिस शहर के पोंटिंग हैं.
अच्छे खिलाड़ी और कप्तान
मैंने संसद से कहा है कि वो आगे देखे और बिना किसी किसी परेशानी के पोंटिंग को आने वाले दिनों में भी टेस्ट और वनडे दोनों टीमों का कप्तान बनाए रखे

खेल मंत्री मिशेल ओबरायन
खेल मंत्री के मुताबिक़ उन्होंने संसद से कहा है कि वो रिकी पोंटिंग को न सिर्फ़ एक एक अच्छे खिलाड़ी के तौर पर बल्कि एक अच्छे टेस्ट कप्तान के तौर पर उनके बढ़िया रिकार्ड की मान्यता दें.
ऑस्ट्रेलियाई समाचार एजेंसी एएपी के अनुसार खेल मंत्री ने कहा, "मैंने संसद से कहा है कि वो आगे देखे और बिना किसी परेशानी के पोंटिंग को आने वाले दिनों में भी टेस्ट और वनडे दोनों टीमों का कप्तान बनाए रखें."
भारत से हार के बाद ऑस्ट्रेलिया में पोंटिंग की कड़ी ओलोचना हो रही है और इससे खेल मंत्री बहुत आहत थीं.
मिशेल ओबरायन का कहना है, "पोंटिंग एक अतुलनीय कप्तान रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि उनके नेतृत्व क्षमता पर हो रहे हमले बहुत निजी है."
ओबरायन के अनुसार पोंटिंग की नेतृत्व क्षमता में कोई कमी नहीं है. उन्होंने कुछ फ़ैसले किए हैं जो कुछ लोगों को पसंद नहीं है.
ग़ौरतलब है कि इससे पहले पूर्व आस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ ने कहा कि टीम की कप्तानी करना कोई आसान काम नहीं है और लोगों को भारत के ख़िलाफ सिरीज़ में मिली हार के लिये रिकी पोंटिंग की आलोचना बंद कर देनी चाहिए.
जानकारों की राय में भारत से मिली हार को ऑस्ट्रेलियाई पचा नहीं पा रहे हैं लेकिन कप्तान रिकी पोंटिंग का कहना है कि अभी भी उनकी टीम दुनिया में नंबर एक टीम है.

राजकोट में इंग्लैंड बुरी तरह हारा



राजकोट में खेले गए वनडे मैच में भारत ने इंग्लैंड को 158 रनों के बड़े अंतर से मात दे दी है. भारत के 387 रनों के जवाब में इंग्लैंड 229 रन ही बना सका.
युवराज सिंह और वीरेंदर सहवाग की धमाकेदार पारी की बदौलत भारत ने निर्धारित 50 ओवर में पाँच विकेट पर 387 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा किया.
भारत की ओर से युवराज सिंह ने शानदार शतक लगाया और 138 रन बनाकर नाबाद रहे. उन्होंने 138 रन सिर्फ़ 78 गेंद पर 16 चौके और छह छक्के की मदद से बनाए.
वीरेंदर सहवाग ने भी अपने अंदाज़ में बल्लेबाज़ी की और सिर्फ़ 73 गेंद पर 85 रन बना डाले.
राजकोट वनडे में भारत की विजय
जवाब में इंग्लैंड ने काफ़ी ख़राब शुरुआत की और एक समय सिर्फ़ 76 रन पर पाँच विकेट गँवा दिए. ज़हीर ख़ान ने शानदार गेंदबाज़ी की और इंग्लैंड के टॉप आर्डर को पवेलियन भेज दिया.
कप्तान पीटरसन ने 63 रनों की पारी खेली
मैट प्रायर चार, ओवैस शाह शून्य और एंड्रयू फ़्लिंटफ़ चार रन बनाकर पवेलियन लौट गए. इयन बेल ने 25 और पॉल कॉलिंगवुड ने 19 रनों का योगदान दिया.
इसके बाद कप्तान केविन पीटरसन और समित पटेल ने छठे विकेट के लिए 71 रनों की साझेदारी की. अच्छा खेल रहे समित पटेल 28 रन बनाकर हरभजन सिंह की गेंद पर आउट हो गए.
इंग्लैंड को बड़ा झटका उस समय लगा जब कप्तान पीटरसन 63 रन बनाकर रन आउट हो गए. स्टुअर्ट ब्रॉड ने 26 रनों की पारी खेली. रवि बोपारा 54 रन बनाकर नाबाद रहे.
ज़हीर ख़ान ने सबसे ज़्यादा तीन विकेट लिए. मुनाफ़ पटेल, हरभजन सिंह, वीरेंदर सहवाग, आरपी सिंह और यूसुफ़ पठान को एक-एक विकेट मिले.
भारतीय पारी
राजकोट वनडे में इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी करने का फ़ैसला किया. लेकिन भारत ने शानदार शुरुआत कर उनके फ़ैसले को ग़लत साबित कर दिया.
युवराज ने नाबाद 138 रन बनाए
सहवाग और गंभीर ने बेहतरीन शुरुआत की. दोनों ने अर्धशतक भी पूरा किया. लेकिन गंभीर 51 रन बनाकर आउट हो गए. पहले विकेट के लिए दोनों ने सिर्फ़ 19.5 ओवर में 127 रन जोड़े.
सुरेश रैना और सहवाग भारत का स्कोर 153 रन तक ले गए. सहवाग बेहतरीन फ़ॉर्म में थे. लेकिन एक बार फिर वे अपने स्कोर को शतक में नहीं बदल सके और 85 रन पर आउट हो गए.
इसके बाद पिच पर पहुँचा भारतीय टीम का युवराज. युवराज सिंह ने अपनी शानदार बल्लेबाज़ी से सबका मन मोह लिया. पीठ दर्द से परेशान युवराज कमर पर बेल्ट बाँध पर बल्लेबाज़ी कर रहे थे.
बाद में उन्हें रनर की सुविधा भी दी गई. लेकिन इन सबके बीच उनकी बल्लेबाज़ी की धार कम नहीं हुई. उन्होंने सिर्फ़ 63 गेंद पर अपना शतक पूरा किया. इस बीच सुरेश रैना 43 और यूसुफ़ पठान बिना खाता खोले पवेलियन लौट चुके थे.
कप्तान धोनी पिच पर आए और आतिशी पारी खेली. धोनी ने 32 गेंद पर 39 रन बनाकर युवराज के साथ तेज़ी से रन बटोरे. भारत ने 50 ओवर में पाँच विकेट पर 387 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया.

Tuesday, November 11, 2008

क्रिकेट से सौरभ गांगुली की विदाई



नागपुर टेस्ट में मिली जीत के साथ ही भारत के सबसे सफल कप्तान रहे सौरव गांगुली की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई हो गई.
उन्हें क्रिकेट की दुनिया में दादा के नाम से जाना जाता है. गांगुली ने अपने टेस्ट करियर की पहली पारी में शतक जमाया था और लेकिन अपने करियर की अंतिम पारी में वो खाता नहीं खोल पाए.
बावजूद इसके गांगुली ने अपनी आख़िरी पारी में एक रिकार्ड बना दिया.
सौरभ गांगुली टेस्ट क्रिकेट में पहली पारी में शतक और अपनी आख़िरी पारी में शून्य बनाने वाले इंग्लैंड के बिली ग्रिफ़िथ के बाद दूसरे क्रिकेटर बन गए हैं.
गांगुली आस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ चौथे और अंतिम टेस्ट के चौथे दिन रविवार को जब बल्लेबाज़ी करने उतरे तो स्टेडियम में दर्शकों और मैदान में मौजूद आस्ट्रेलियाई खिलाडि़यों ने उनका स्वागत किया.
लेकिन गांगुली सिर्फ़ एक गेंद ही विकेट पर टिक सके और ऑफ स्पिनर जैसन क्रेजा की गेंद पर उन्हें कैच दे बैठे. उन्होंने पहली पारी में शानदार 85 रन बनाए थे.
गांगुली ने अपने करियर की समाप्ति 113 टेस्ट मैचों में 7212 रन के साथ की जिनमें 16 शतक शामिल हैं.
भारत के सबसे सफल कप्तान गांगुली ने 49 टेस्टों में भारत का नेतृत्व किया और 21 मैच जीते.
संन्यास के समय गांगुली ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था," भारतीय टीम का नेतृत्व करना आसान नहीं है, ख़ासकर जब आपको सलाह देने के लिए सौ करोड़ लोग मौजूद हों."
उनका कहना था, "जब तक आप जीत रहे हों तब तक तो ठीक है लेकिन अगर आप हार गए तो प्रतिक्रिया थोड़ी तेज़ हो सकती है."
दादा का जलवा
भारतीय टीम को 2003 के क्रिकेट के विश्व कप फ़ाइनल तक पहुँचाने का श्रेय भी सौरव की गांगुली को ही जाता है.
भारतीय टीम का नेतृत्व करना आसान नहीं है, ख़ासकर जब आपको सलाह देने के लिए सौ करोड़ लोग मौजूद हों

सौरभ गांगुली
और वह सौरव गांगुली की कप्तानी के ही दिन थे जब भारतीय क्रिकेट में पैसे की बरसात होनी शुरु हुई.
भारत में सौरव गांगुली को लेकर बहुत विवाद भी होते रहे हैं, ख़ासकर उनके टीम में रहने न रहने को लेकर.
भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्रेग चैपल के साथ अनबन होने से पहले सौरव ने पाँच साल तक भारतीय टीम की कप्तानी संभाली. फिर वो टीम से बाहर हो गए.
तब एक ऐसा समय था जब लोग मानने लगे थे कि सौरव का क्रिकेट जीवन ख़त्म हो गया लेकिन उन्होंने समीक्षकों को ग़लत साबित किया और एक बार फिर से भारतीय टीम में जगह बनाई.
लेकिन कप्तानी से हटने के बाद उनका वह रुतबा नहीं रह गया जिसके लिए वो जाने जाते थे.
चाहे आप उन्हें पसंद करें या न करें लेकिन एक बात तय रही है कि आप उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते.
सौरव ख़ुद मानते हैं कि वे संन्यास के फ़ैसले से राहत महसूस कर रहे हैं.
भारत के सबसे सफल कप्तान रहे सौरव गांगुली कहते हैं कि वे अब आराम की नींद सोना चाहते हैं.
लेकिन दादा जो रिकॉर्ड छोड़कर जा रहे हैं, वो उनकी सफलता की कहानी ख़ुद बयान करते हैं.

Saturday, November 8, 2008

बीआर चोपड़ा का निधन

बीआर चोपड़ा ने भारतीय फ़िल्म जगत और छोटे पर्दें को बहुत कुछ दिया
भारतीय फ़िल्म जगत के मशहूर निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा का लंबी बीमारी के बाद बुधवार सुबह मुंबई में निधन हो गया.
वह 94 साल के थे. उनके परिवार में एक बेटा और दो बेटियाँ हैं.
‘धूल का फूल’, ‘वक़्त’, ‘नया दौर’, ‘क़ानून’, ‘हमराज’, ‘इंसाफ़ का तराज़ू’ और ‘निकाह’ जैसी कई सफल फ़िल्में बलदेवराज चोपड़ा की देन हैं.
पर बड़े पर्दे पर ही नहीं, बीआर चोपड़ा ने छोटे पर्दे को भी जो दिया, वो उनके बाद शायद कोई न दे सके.
महाभारत की कथा पर महाभारत नाम से ही एक ऐसा धारावाहिक बीआर चोपड़ा ने बनाया जिसकी प्रसिद्धि का पैमाना आज भी धारावाहिक जगत में मानक के तौर पर देखा जाता है.
मशहूर निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा उनके छोटे भाई हैं.
महान फ़िल्मकार
नया दौर जैसी फ़िल्म बीआर चोपड़ा की देन है
बीआर चोपड़ा के नाम से मशहूर बलदेव राज चोपड़ा का जन्म 22 अप्रैल 1914 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था.
उन्होंने लाहौर विश्विवद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया था. उन्होंने अपना करियर फ़िल्म पत्रकार के रूप में शुरू किया था.
वर्ष 1955 में बीआर चोपड़ा ने अपने फ़िल्म निर्माण कंपनी बीआर फ़िल्म्स बनाई. इस बैनर की ओर से उन्होंने ‘नया दौर’ बनाई.
बीआर चोपड़ा ने विधवा पुनर्विवाह और वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक समस्या को अपनी फ़िल्मों का विषय बनाया. उनकी ज़्यादातर फ़िल्में किसी न किसी सामाजिक मुद्दे पर आधारित थी.
फ़िल्म जगत में दिए गए उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें फ़िल्मों का सबसे बड़े सम्मन ‘दादा साहब फाल्के’ से सम्मानित किया.

पंडित भीमसेन जोशी को भारत रत्न



सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी को सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित करने का फ़ैसला किया है.
मंगलवार को राष्ट्रपति भवन की ओर से इस आशय की घोषणा की गई.
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है,'' राष्ट्रपति को पंडित भीमसेन जोशी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा करते हुए हर्ष हो रहा है.''
86 वर्षीय भीमसेन जोशी किराना घराने के महत्वपूर्ण गायक हैं.
उन्होंने 19 साल की उम्र से गाना शुरू किया था और वो पिछले सात दशकों से शास्त्रीय गायन कर रहे हैं.
इस स्वर-साधक ने अपने तप से भारतीय शास्त्रीय संगीत को अनूठी ऊँचाइयाँ दी हैं.
शास्त्रीय संगीत के पंडितों का कहना है कि गायन का जो अंदाज़ भीमसेन जोशी के पास है वो समकालीन भारतीय संगीत में बहुत कम ही लोगों के मिला है.
वर्ष 1922 में जन्मे पंडित जोशी किराना घराने से संबंध रखते हैं.
उन्हें मुख्य रूप से उनके खयाल शैली और भजन के लिए जाना जाता है.
पंडित जोशी का जन्म कर्नाटक के गडक ज़िले के एक छोटे से शहर में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे.
पंडित जोशी को वर्ष 1999 में पद्मविभूषण, 1985 में पद्मभूषण और 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

गांगुली खेल रहे हैं अपना अंतिम टेस्ट






सबसे सफल कप्तान के क्रिकेट जीवन में भी कई उतार चढ़ाव आए
भारत से सबसे सफल कप्तान रहे सौरव गांगुली नागपुर में अपने जीवन का अंतिम टेस्ट मैच खेल रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के साथ खेले जा रहे इस टेस्ट मैच के बाद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की है.
सौरव गांगुली कुल 49 मैचों में भारत के कप्तान रहे और इनमें से 21 में भारत को जीत हासिल हुई.
और वह सौरव गांगुली की कप्तानी के ही दिन थे जब भारतीय क्रिकेट में पैसे की बरसात होनी शुरु हुई.
भारत में सौरव गांगुली को लेकर बहुत विवाद भी होते रहे हैं, ख़ासकर उनके टीम में रहने न रहने को लेकर.
चाहे आप उन्हें पसंद करें या न करें लेकिन एक बात तय रही है कि आप उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते.
भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्रेग चैपल के साथ अनबन होने से पहले सौरव ने पाँच साल तक भारतीय टीम की कप्तानी संभाली.
तब एक ऐसा समय था जब लोग मानने लगे थे कि सौरव का क्रिकेट जीवन ख़त्म हो गया लेकिन उन्होंने समीक्षकों को ग़लत साबित किया और एक बार फिर से भारतीय टीम में जगह बनाई.
नेतृत्व
भारत में क्रिकेट एक धर्म की तरह ही है.
गांगुली कहते हैं, "भारतीय टीम का नेतृत्व करना आसान नहीं है, ख़ासकर जब आपको सलाह देने के लिए सौ करोड़ लोग मौजूद हों."
वे कहते हैं, "जब तक आप जीत रहे हों तब तक तो ठीक है लेकिन अगर आप हार गए तो प्रतिक्रिया थोड़ी तेज़ हो सकती है."
इस अनुभव के बारे में वे कहते हैं, "जब आप नहीं जीतते हैं तो सोते-जागते आपको इसकी याद दिलाई जाती है...लेकिन एक समय बाद आप इसके आदी हो जाते हैं...और यह सभी कप्तानों के लिए एक जैसा है, कभी आप आसमान में होते हैं और कभी ज़मीन पर पटक दिए जाते हैं."
गांगुली के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम ने भारत में हो रहे विकास की झलक दिखलाई.
भारत जब आर्थिक रुप से मज़बूत होकर उभर रहा था और विश्वपटल पर उसका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ दिखता था, तब भारतीय क्रिकेट टीम भी उसके साथ कमदताल कर रही थी.
गांगुली का नेतृत्व आक्रामक था और उनके नेतृत्व में खेलते हुए खिलाड़ियों ने लाखों-करोड़ों रुपए कमाए क्योंकि भारत क्रिकेट का आर्थिक केंद्र बन रहा था.
लेकिन सौरव के गृहनगर कोलकाता में दादा, यानी की बड़ा भाई, अपना पैड उतारने जा रहा है.
सौरव ख़ुद मानते हैं कि वे संन्यास के फ़ैसले से राहत महसूस कर रहे हैं.
भारत के सबसे सफल कप्तान रहे सौरव गांगुली कहते हैं कि वे अब आराम की नींद सोना चाहते हैं.
AVINASH JHA