टीवी चैनल पर मैं भी
सौरभ गांगुली के प्रेस कॉन्फ़्रेंस को देख रहा था.
कमर्शियल ब्रेक हुआ और इस बीच दिल्ली से मेरे सहयोगी सुशील झा ने मुझे बताया कि दादा ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है. Good By Shehjadaa
सहसा यक़ीन नहीं हुआ. तभी एकाएक अख़बारों के इंटरनेट संस्करण और टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग ख़बरें आने लगीं. गांगुली ने रिटायर होने की घोषणा कर दी.
टीवी चैनल पर नज़रें टिकाए मैं गांगुली के बयान के उस हिस्से को देखने के लिए उतावला हो रहा था. साथ ही मन दुखी भी हो गया.
कुछ देर में टीवी चैनल पर एक ऐसे खिलाड़ी को क्रिकेट को अलविदा कहते देख रहा था जिसने भारतीय क्रिकेट को बहुत कुछ दिया है.
तो आख़िरकार मीडिया के सूत्रों की वो बात सही निकली, जो कुछ दिनों से कही जा रही थी. यानी सौरभ गांगुली को टीम में इसलिए जगह मिली है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह सकें.
यानी सम्मानपूर्ण विदाई का एक मौक़ा. तो क्या ये बात भी मान ली जाए कि जिन सूत्रों के हवाले से ये ख़बर आई थी, वही सूत्र अनिल कुंबले के बारे में भी यही कह थे और ये भी कह रहे थे कि बाक़ी सीनियर्स का भी दिसंबर तक यही हाल होना है.
पिछले कुछ दिनों से इन वरिष्ठ खिलाड़ियों की सम्मानपूर्ण विदाई की बात ख़ूब ज़ोर-शोर से उठाई जा रही थी. मीडिया इसे पीट रहा था तो ये खिलाड़ी इससे इनकार कर रहे थे.
ये बहस का विषय हो सकता है कि इन सीनियर खिलाड़ियों को कब संन्यास कहना है, लेकिन क्या इस पर बहस नहीं होनी चाहिए कि बोर्ड ने इन खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार किया है.
गांगुली की अगुआई में भारतीय टीम ने कई ट्राफियां जीती हैं
क्या इस पर ज़ोर-शोर से चर्चा नहीं होनी चाहिए कि इन खिलाड़ियों ने भारतीय क्रिकेट को क्या दिया है. लेकिन अफ़सोस की बात है कि अपने क्रिकेट करियर के आख़िरी दिनों में इन खिलाड़ियों को जिस दौर से गुज़रना पड़ रहा है, वैसी विदाई की तो उन्होंने कल्पना नहीं की होगी.
दो-ढ़ाई साल पहले गांगुली को बिना वजह टीम से बाहर किया गया था, पिछले साल विश्व कप के बाद सचिन जैसे खिलाड़ियों पर ख़ूब सवाल किए गए थे और पता नहीं क्या-क्या.
गांगुली ने पहले भी चुप रहकर अपनी वापसी के लिए यत्न किया. मीडिया में कुछ कह न पाने की बेबसी में उन्होंने कैसे ये क्षण जिए होंगे, मीडिया ने कभी ख़ुल कर उनका आकलन नहीं किया.
न ही कभी उनकी वापसी का जश्न ठीक से मना, जो मनना चाहिए था. बदले में ये हुआ कि श्रीलंका के ख़िलाफ़ एक सिरीज़ क्या ख़राब खेली, रिटायरमेंट का दबाव ऐसा बना. जिसमें गांगुली ने आख़िरकार हार मान ली.
ऐसा क्रिकेटर और कप्तान जिसने मैदान में कभी हार नहीं मानी. जिसने भारतीय टीम को पेशेवर माहौल में जीत का नया दर्शन सिखाया, जिसने भारत को सफलता की ऐसी बुनियाद दी जिस पर आज इमारत खड़ी की जा रही है.
वर्ष 2004 के चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के दौरान मुझे पहली बार गांगुली से सवाल करने का मौक़ा मिला था. गांगुली के आत्मविश्वास ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था.
फिर पिछले साल 2007 के विश्व कप के दौरान मैंने वेस्टइंडीज़ में एक दूसरे शख़्स को देखा. एक ऐसा शख़्स जो अंदर ही अंदर टूट रहा था. मैदान पर खेलते, होटल के गलियारों में घूमते या फिर नेट प्रैक्टिस करते वो शख़्स वो नहीं रहा था जो दो साल पहले थे.
खिलाड़ियों के बीच भी उसका ये रुख़ मुझे बहुत चिंतित करता था. मैंने अपने कई पत्रकार साथियों को उसी समय कहा था गांगुली के साथ अच्छा नहीं हो रहा.
भारतीय टीम जब सुपर-8 में भी नहीं पहुँच पाई और श्रीलंका के हाथों हारने के बाद बाहर हुई तो स्टेडियम में मौजूद कई दर्शकों ने एक सुर में मांगकी- गांगुली को कप्तानी दो, हमें गांगुली जैसा कप्तान चाहिए, संघर्ष करने वाला कप्तान.
लेकिन न ऐसा होना था और न ऐसा हुआ. द्रविड़ के कप्तानी छोड़ने के बाद भी जब ऐसा नहीं हुआ तो लगा गांगुली को सम्मानपूर्ण विदाई देना कोई नहीं चाहता.
गांगुली की ख़ामोशी बहुत कुछ कहती थी. ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सिरीज़ में गांगुली बहुत अच्छा खेले. लेकिन वनडे से उन्हें बाहर कर दिया गया.
और अब वो दिन भी आया जब गांगुली ने अपना बल्ला टांगने की घोषणा कर दी.बात ये नहीं कि युवा पीढ़ी को टीम में मौक़ा नहीं मिलना चाहिए, बात ये भी नहीं कि लंबे समय तक ये खिलाड़ी अपने करियर को बेवजह ज़्यादा खींचे, बात सिर्फ़ इतनी है कि क्या वाकई गांगुली को सम्मानपूर्ण विदाई दी गई है.
पिछले तीन-चार सालों के दौरान गांगुली जैसे क्रिकेटर के साथ जो हुआ, उसने एक बेहतरीन खिलाड़ी और कामयाब कप्तान को तिल-तिल करके मारा है. संन्यास आज नहीं तो कल सबको लेना है. संन्यास शेन वॉर्न ने भी लिया, ग्लेन मैकग्रॉ ने भी और आने वाले समय में सचिन तेंदुलकर भी संन्यास ले लेंगे.
लेकिन संन्यास लेने के बाद गांगुली जैसे क्रिकेटरों को जिसका सबसे ज़्यादा अफ़सोस होगा, वो होगा, उनके चारों ओर बनाई गई उस परिधि के लिए, जिसके लिए वे कभी ज़िम्मेदार नहीं रहे.
चेहरे पर अजीब सी पीड़ा लिए जब गांगुली ने ये कहा- मैं इस सिरीज़ के बाद संन्यास ले लूँगा. आप सभी का धन्यवाद.., तो सच पूछिए एक सवाल मेरे मन में भी उठा- वो सम्मानपूर्वक जा रहे हैं या अपमान के साथ. फ़ैसला आप कीजिए.
गांगुली का रिकार्ड एक नज़र में...
ऑस्ट्रेलिया सीरिज़ से पहले तक.
टेस्ट मैच
109 टेस्ट.....180 पारियां......15 नाबाद.......6888 रन.....239 सर्वाधिक स्कोर...........41.74 औसत....51.36 स्ट्राइक रेट.....15 शतक...34 अर्धशतक......873 चौके.....55 छक्के..............71 कैच
एकदिवसीय मैच
311 वनडे....300 पारियां......23 नाबाद...11363 रन......183 सर्वाधिक......41.02औसत....73.70स्ट्राइक रेट......22 शतक...72 अर्धशतक....1122 चौके......190 छक्के..... 100 कैच.
गेंदबाज़ी
टेस्ट मैच
109 टेस्ट..... 99 पारी...3117 गेंदें....1681 रन.....32 विकेट....3/28सर्वश्रेष्ठ.....52.53 औसत...3.23 इकोनोमी रेट...
वनडे मैच
311 वनडे......171 पारी....4561गेंदें....100 विकेट....5/16सर्वश्रेष्ठ.....38.49 औसत....5.06 इकोनोमी रेट
कमर्शियल ब्रेक हुआ और इस बीच दिल्ली से मेरे सहयोगी सुशील झा ने मुझे बताया कि दादा ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है. Good By Shehjadaa
सहसा यक़ीन नहीं हुआ. तभी एकाएक अख़बारों के इंटरनेट संस्करण और टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग ख़बरें आने लगीं. गांगुली ने रिटायर होने की घोषणा कर दी.
टीवी चैनल पर नज़रें टिकाए मैं गांगुली के बयान के उस हिस्से को देखने के लिए उतावला हो रहा था. साथ ही मन दुखी भी हो गया.
कुछ देर में टीवी चैनल पर एक ऐसे खिलाड़ी को क्रिकेट को अलविदा कहते देख रहा था जिसने भारतीय क्रिकेट को बहुत कुछ दिया है.
तो आख़िरकार मीडिया के सूत्रों की वो बात सही निकली, जो कुछ दिनों से कही जा रही थी. यानी सौरभ गांगुली को टीम में इसलिए जगह मिली है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह सकें.
यानी सम्मानपूर्ण विदाई का एक मौक़ा. तो क्या ये बात भी मान ली जाए कि जिन सूत्रों के हवाले से ये ख़बर आई थी, वही सूत्र अनिल कुंबले के बारे में भी यही कह थे और ये भी कह रहे थे कि बाक़ी सीनियर्स का भी दिसंबर तक यही हाल होना है.
पिछले कुछ दिनों से इन वरिष्ठ खिलाड़ियों की सम्मानपूर्ण विदाई की बात ख़ूब ज़ोर-शोर से उठाई जा रही थी. मीडिया इसे पीट रहा था तो ये खिलाड़ी इससे इनकार कर रहे थे.
ये बहस का विषय हो सकता है कि इन सीनियर खिलाड़ियों को कब संन्यास कहना है, लेकिन क्या इस पर बहस नहीं होनी चाहिए कि बोर्ड ने इन खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार किया है.
गांगुली की अगुआई में भारतीय टीम ने कई ट्राफियां जीती हैं
क्या इस पर ज़ोर-शोर से चर्चा नहीं होनी चाहिए कि इन खिलाड़ियों ने भारतीय क्रिकेट को क्या दिया है. लेकिन अफ़सोस की बात है कि अपने क्रिकेट करियर के आख़िरी दिनों में इन खिलाड़ियों को जिस दौर से गुज़रना पड़ रहा है, वैसी विदाई की तो उन्होंने कल्पना नहीं की होगी.
दो-ढ़ाई साल पहले गांगुली को बिना वजह टीम से बाहर किया गया था, पिछले साल विश्व कप के बाद सचिन जैसे खिलाड़ियों पर ख़ूब सवाल किए गए थे और पता नहीं क्या-क्या.
गांगुली ने पहले भी चुप रहकर अपनी वापसी के लिए यत्न किया. मीडिया में कुछ कह न पाने की बेबसी में उन्होंने कैसे ये क्षण जिए होंगे, मीडिया ने कभी ख़ुल कर उनका आकलन नहीं किया.
न ही कभी उनकी वापसी का जश्न ठीक से मना, जो मनना चाहिए था. बदले में ये हुआ कि श्रीलंका के ख़िलाफ़ एक सिरीज़ क्या ख़राब खेली, रिटायरमेंट का दबाव ऐसा बना. जिसमें गांगुली ने आख़िरकार हार मान ली.
ऐसा क्रिकेटर और कप्तान जिसने मैदान में कभी हार नहीं मानी. जिसने भारतीय टीम को पेशेवर माहौल में जीत का नया दर्शन सिखाया, जिसने भारत को सफलता की ऐसी बुनियाद दी जिस पर आज इमारत खड़ी की जा रही है.
वर्ष 2004 के चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के दौरान मुझे पहली बार गांगुली से सवाल करने का मौक़ा मिला था. गांगुली के आत्मविश्वास ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था.
फिर पिछले साल 2007 के विश्व कप के दौरान मैंने वेस्टइंडीज़ में एक दूसरे शख़्स को देखा. एक ऐसा शख़्स जो अंदर ही अंदर टूट रहा था. मैदान पर खेलते, होटल के गलियारों में घूमते या फिर नेट प्रैक्टिस करते वो शख़्स वो नहीं रहा था जो दो साल पहले थे.
खिलाड़ियों के बीच भी उसका ये रुख़ मुझे बहुत चिंतित करता था. मैंने अपने कई पत्रकार साथियों को उसी समय कहा था गांगुली के साथ अच्छा नहीं हो रहा.
भारतीय टीम जब सुपर-8 में भी नहीं पहुँच पाई और श्रीलंका के हाथों हारने के बाद बाहर हुई तो स्टेडियम में मौजूद कई दर्शकों ने एक सुर में मांगकी- गांगुली को कप्तानी दो, हमें गांगुली जैसा कप्तान चाहिए, संघर्ष करने वाला कप्तान.
लेकिन न ऐसा होना था और न ऐसा हुआ. द्रविड़ के कप्तानी छोड़ने के बाद भी जब ऐसा नहीं हुआ तो लगा गांगुली को सम्मानपूर्ण विदाई देना कोई नहीं चाहता.
गांगुली की ख़ामोशी बहुत कुछ कहती थी. ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सिरीज़ में गांगुली बहुत अच्छा खेले. लेकिन वनडे से उन्हें बाहर कर दिया गया.
और अब वो दिन भी आया जब गांगुली ने अपना बल्ला टांगने की घोषणा कर दी.बात ये नहीं कि युवा पीढ़ी को टीम में मौक़ा नहीं मिलना चाहिए, बात ये भी नहीं कि लंबे समय तक ये खिलाड़ी अपने करियर को बेवजह ज़्यादा खींचे, बात सिर्फ़ इतनी है कि क्या वाकई गांगुली को सम्मानपूर्ण विदाई दी गई है.
पिछले तीन-चार सालों के दौरान गांगुली जैसे क्रिकेटर के साथ जो हुआ, उसने एक बेहतरीन खिलाड़ी और कामयाब कप्तान को तिल-तिल करके मारा है. संन्यास आज नहीं तो कल सबको लेना है. संन्यास शेन वॉर्न ने भी लिया, ग्लेन मैकग्रॉ ने भी और आने वाले समय में सचिन तेंदुलकर भी संन्यास ले लेंगे.
लेकिन संन्यास लेने के बाद गांगुली जैसे क्रिकेटरों को जिसका सबसे ज़्यादा अफ़सोस होगा, वो होगा, उनके चारों ओर बनाई गई उस परिधि के लिए, जिसके लिए वे कभी ज़िम्मेदार नहीं रहे.
चेहरे पर अजीब सी पीड़ा लिए जब गांगुली ने ये कहा- मैं इस सिरीज़ के बाद संन्यास ले लूँगा. आप सभी का धन्यवाद.., तो सच पूछिए एक सवाल मेरे मन में भी उठा- वो सम्मानपूर्वक जा रहे हैं या अपमान के साथ. फ़ैसला आप कीजिए.
गांगुली का रिकार्ड एक नज़र में...
ऑस्ट्रेलिया सीरिज़ से पहले तक.
टेस्ट मैच
109 टेस्ट.....180 पारियां......15 नाबाद.......6888 रन.....239 सर्वाधिक स्कोर...........41.74 औसत....51.36 स्ट्राइक रेट.....15 शतक...34 अर्धशतक......873 चौके.....55 छक्के..............71 कैच
एकदिवसीय मैच
311 वनडे....300 पारियां......23 नाबाद...11363 रन......183 सर्वाधिक......41.02औसत....73.70स्ट्राइक रेट......22 शतक...72 अर्धशतक....1122 चौके......190 छक्के..... 100 कैच.
गेंदबाज़ी
टेस्ट मैच
109 टेस्ट..... 99 पारी...3117 गेंदें....1681 रन.....32 विकेट....3/28सर्वश्रेष्ठ.....52.53 औसत...3.23 इकोनोमी रेट...
वनडे मैच
311 वनडे......171 पारी....4561गेंदें....100 विकेट....5/16सर्वश्रेष्ठ.....38.49 औसत....5.06 इकोनोमी रेट
No comments:
Post a Comment