बिहार में बाढ़ का क़हर बरपा रही कोसी नदी कहीं-कहीं कुछ कम हुआ है लेकिन उसका नए-नए इलाक़ों में प्रवेश जारी है.
जहाँ दो दिनों पहले पानी नहीं था वहाँ अब पानी भर आया है और लोग वहाँ से सुरक्षित स्थानों की तलाश में विस्थापित हो रहे हैं.
प्रशासन का दावा है कि बचाव और राहत कार्य युद्ध स्तर पर शुरु हो चुका है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की हालत देखकर लगता है कि यह सहायता अपर्याप्त है.
सबसे बड़ी दिक्कत बचाव और राहत कार्य के समन्वय की है जिसकी कमी से सुविधाओं का ठीक तरह से उपयोग नहीं हो पा रहा है.
पिछले 16 दिनों में बाढ़ के तांडव में मरने वालों की संख्या अभी भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ सौ से कम है लेकिन सहायता एजेंसियों और संवाददाताओं का कहना है कि यह संख्या कई गुना अधिक हो सकती है.
18 अगस्त को कोसी नदी के तटबंध टूटने से आई इस बाढ़ से बिहार के 16 ज़िले प्रभावित हैं लेकिन कोसी इलाक़े के चार ज़िलों सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा में इसकी स्थिति ख़ासी गंभीर है.
बाढ़ पीड़ित 33 लाख लोगों में से 22 लाख तो कोसी इलाक़ों के चार ज़िलों से ही हैं.
राहत और बचाव कार्य
अधिकारियों का कहना है कि सेना की 20 टुकड़ियाँ राहत और बचाव कार्य में लगी हैं और बुधवार को पाँच और टुकड़ियाँ इस कार्य में लग जाएँगीं.
11 हेलिकॉप्टरों से बाढ़ में फँसे लोगों तक खाद्यसामग्री गिराई जा रही है लेकिन यह इतनी अपर्याप्त है कि कई इलाक़ों में लोग कई दिनों से भूखे सहायता का इंतज़ार कर रहे हैं.
जब कोई सहायता वहाँ पहुँचती है तब पता चल पाता है कि वे कब से राहत का इंतज़ार कर रहे थे.
अधिकारियों के अनुसार 1300 नौकाओं के माध्यम से बाढ़ प्रभावितों को बचाने और राहत शिविरों तक पहुँचाने के अभियान में जुटी हुई हैं. लेकिन एक नौका से कोई 20-25 लोगों को बचाया जा सकता है और लोगों की संख्या इससे कहीं अधिक है.
लेकिन सरकारी दावे से अलग प्रभावित इलाक़ों से ख़बरें आ रही हैं कि लाखों बाढ़ पीड़ित अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हैं और राहत कार्य में व्यवस्था की बेहद कमी है.
बहुत से इलाक़ों में स्थानीय लोग राहत कार्यों में लगे हुए हैं
कई जगहों पर सरकारी मदद अभी भी नहीं पहुँची है और स्थानीय लोग अपने स्तर पर ही बाढ़ पीड़ितों की सहायता कर रहे हैं.
लेकिन बाढ़ पीड़ितों की संख्या बढ़ने के साथ अब लागों को समझ में नहीं आ रहा है कि सरकारी मदद के बिना यह कितने दिनों तक संभव हो सकेगा.
इस बीच बिहार में बाढ़ राहत के कार्य में जुटी संस्थाओं में से एक – ऐक्शन एड – का कहना है कि बाढ़ में मारे गए लोगों की संख्या 2000 के आस-पास हो सकती है.
वहाँ काम कर रहे लोगों का कहना है कि जहाँ तहाँ पानी में बहती लाशें दिख रही हैं.
ज्यादातर जानवरों की लाशें फूलकर उतरा रही हैं और अक्सर किसी इंसान की लाश भी दिख जाती है.
राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि 15 लाख से अधिक मवेशी इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और उनके खाने के लिए चारे की कोई व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है, यानी जानवर पिछले 16 दिन से भूखे हैं.
फँसे लोग
प्रशासन का कहना है कि सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा ज़िलों के कई स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग अभी भी बाढ़ के बीच फँसे हुए हैं.
प्रशासन के अनुसार छापातुर, त्रिवेणीगंज, प्रतापगंज, वीरपुर कुमारखंड, चौसा, आलमनगर, ग्वालपाड़ा, सौर बाज़ार, बिहारीगंज, उदाकिशनगंज और सोनवर्षा में फँसे हुए लोगों की संख्या बहुत अधिक है.
नौसेना की तीन टुकड़ियों को बनमनरवी और नरपतगंज इलाक़ों में लोगों को निकालने के लिए लगाया गया है.
प्रशासन और सेना के बीच तालमेल की कमी दिख रही है क्योंकि कई जगह सेना के जवान इसलिए खाली बैठे हुए दिखे क्योंकि उन्हें प्रशासन की ओर से समय पर निर्देश नहीं मिल पा रहे हैं.
और सहायता की माँग
मंगलवार को केंद्रीय कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर के नेतृत्व में एक टीम ने बाढ़ग्रस्त इलाक़ों का दौरा किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाक़ात की.
नीतीश कुमार ने केंद्र के सामने ज़रुरतों की नई सूची रखी है
इस दल में रक्षासचिव विजय सिंह, सीमासुरक्षा मामलों के गृहसचिव जनरैल सिंह, जलसंसाधन विकास मंत्री यूएन पाँजियार, आपदा प्रबंधन अधिकरण के सचिव एचएस ब्रह्मा आदि थे.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस दल को बताया कि राज्य सरकार ने विकास आयुक्त के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है जो लोगों को बचाने और राहत पहुँचाने के कार्य को संभाल रही है.
केंद्रीय टीम ने राज्य सरकार से इस बात पर चर्चा की है कि राष्ट्रीय आपदा से निपटने के लिए केंद्र सरकार की ओर से और क्या मदद की जा सकती है.
नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से बाढ़ पीड़ितों के लिए और सहायता की अपील की है और साथ ही कहा है कि केंद्र सरकार अनाज के भंडारों से जल्द से जल्द अनाज दे जिससे कि उसे अविलंब बाढ़ पीड़ितों तक पहुँचाया जा सके.
मुख्यमंत्री ने 50 एंबुलेंस और पर्याप्त जीवन रक्षक दवाइयों की मांग की है.
केंद्रीय टीम ने राज्य की माँगों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है.
जहाँ दो दिनों पहले पानी नहीं था वहाँ अब पानी भर आया है और लोग वहाँ से सुरक्षित स्थानों की तलाश में विस्थापित हो रहे हैं.
प्रशासन का दावा है कि बचाव और राहत कार्य युद्ध स्तर पर शुरु हो चुका है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की हालत देखकर लगता है कि यह सहायता अपर्याप्त है.
सबसे बड़ी दिक्कत बचाव और राहत कार्य के समन्वय की है जिसकी कमी से सुविधाओं का ठीक तरह से उपयोग नहीं हो पा रहा है.
पिछले 16 दिनों में बाढ़ के तांडव में मरने वालों की संख्या अभी भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ सौ से कम है लेकिन सहायता एजेंसियों और संवाददाताओं का कहना है कि यह संख्या कई गुना अधिक हो सकती है.
18 अगस्त को कोसी नदी के तटबंध टूटने से आई इस बाढ़ से बिहार के 16 ज़िले प्रभावित हैं लेकिन कोसी इलाक़े के चार ज़िलों सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा में इसकी स्थिति ख़ासी गंभीर है.
बाढ़ पीड़ित 33 लाख लोगों में से 22 लाख तो कोसी इलाक़ों के चार ज़िलों से ही हैं.
राहत और बचाव कार्य
अधिकारियों का कहना है कि सेना की 20 टुकड़ियाँ राहत और बचाव कार्य में लगी हैं और बुधवार को पाँच और टुकड़ियाँ इस कार्य में लग जाएँगीं.
11 हेलिकॉप्टरों से बाढ़ में फँसे लोगों तक खाद्यसामग्री गिराई जा रही है लेकिन यह इतनी अपर्याप्त है कि कई इलाक़ों में लोग कई दिनों से भूखे सहायता का इंतज़ार कर रहे हैं.
जब कोई सहायता वहाँ पहुँचती है तब पता चल पाता है कि वे कब से राहत का इंतज़ार कर रहे थे.
अधिकारियों के अनुसार 1300 नौकाओं के माध्यम से बाढ़ प्रभावितों को बचाने और राहत शिविरों तक पहुँचाने के अभियान में जुटी हुई हैं. लेकिन एक नौका से कोई 20-25 लोगों को बचाया जा सकता है और लोगों की संख्या इससे कहीं अधिक है.
लेकिन सरकारी दावे से अलग प्रभावित इलाक़ों से ख़बरें आ रही हैं कि लाखों बाढ़ पीड़ित अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हैं और राहत कार्य में व्यवस्था की बेहद कमी है.
बहुत से इलाक़ों में स्थानीय लोग राहत कार्यों में लगे हुए हैं
कई जगहों पर सरकारी मदद अभी भी नहीं पहुँची है और स्थानीय लोग अपने स्तर पर ही बाढ़ पीड़ितों की सहायता कर रहे हैं.
लेकिन बाढ़ पीड़ितों की संख्या बढ़ने के साथ अब लागों को समझ में नहीं आ रहा है कि सरकारी मदद के बिना यह कितने दिनों तक संभव हो सकेगा.
इस बीच बिहार में बाढ़ राहत के कार्य में जुटी संस्थाओं में से एक – ऐक्शन एड – का कहना है कि बाढ़ में मारे गए लोगों की संख्या 2000 के आस-पास हो सकती है.
वहाँ काम कर रहे लोगों का कहना है कि जहाँ तहाँ पानी में बहती लाशें दिख रही हैं.
ज्यादातर जानवरों की लाशें फूलकर उतरा रही हैं और अक्सर किसी इंसान की लाश भी दिख जाती है.
राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि 15 लाख से अधिक मवेशी इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और उनके खाने के लिए चारे की कोई व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है, यानी जानवर पिछले 16 दिन से भूखे हैं.
फँसे लोग
प्रशासन का कहना है कि सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा ज़िलों के कई स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग अभी भी बाढ़ के बीच फँसे हुए हैं.
प्रशासन के अनुसार छापातुर, त्रिवेणीगंज, प्रतापगंज, वीरपुर कुमारखंड, चौसा, आलमनगर, ग्वालपाड़ा, सौर बाज़ार, बिहारीगंज, उदाकिशनगंज और सोनवर्षा में फँसे हुए लोगों की संख्या बहुत अधिक है.
नौसेना की तीन टुकड़ियों को बनमनरवी और नरपतगंज इलाक़ों में लोगों को निकालने के लिए लगाया गया है.
प्रशासन और सेना के बीच तालमेल की कमी दिख रही है क्योंकि कई जगह सेना के जवान इसलिए खाली बैठे हुए दिखे क्योंकि उन्हें प्रशासन की ओर से समय पर निर्देश नहीं मिल पा रहे हैं.
और सहायता की माँग
मंगलवार को केंद्रीय कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर के नेतृत्व में एक टीम ने बाढ़ग्रस्त इलाक़ों का दौरा किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाक़ात की.
नीतीश कुमार ने केंद्र के सामने ज़रुरतों की नई सूची रखी है
इस दल में रक्षासचिव विजय सिंह, सीमासुरक्षा मामलों के गृहसचिव जनरैल सिंह, जलसंसाधन विकास मंत्री यूएन पाँजियार, आपदा प्रबंधन अधिकरण के सचिव एचएस ब्रह्मा आदि थे.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस दल को बताया कि राज्य सरकार ने विकास आयुक्त के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है जो लोगों को बचाने और राहत पहुँचाने के कार्य को संभाल रही है.
केंद्रीय टीम ने राज्य सरकार से इस बात पर चर्चा की है कि राष्ट्रीय आपदा से निपटने के लिए केंद्र सरकार की ओर से और क्या मदद की जा सकती है.
नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से बाढ़ पीड़ितों के लिए और सहायता की अपील की है और साथ ही कहा है कि केंद्र सरकार अनाज के भंडारों से जल्द से जल्द अनाज दे जिससे कि उसे अविलंब बाढ़ पीड़ितों तक पहुँचाया जा सके.
मुख्यमंत्री ने 50 एंबुलेंस और पर्याप्त जीवन रक्षक दवाइयों की मांग की है.
केंद्रीय टीम ने राज्य की माँगों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है.
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