Friday, September 12, 2008

परमाणु समझौता अमरीकी संसद में पेश


जुलाई, 2005 में मनमोहन-बुश बातचीत के बाद इस समझौते की प्रक्रिया शुरु हुई थी
भारत-अमरीका परमाणु समझौते संबंधी दस्तावेज़ को अमरीकी संसद में पेश कर दिया गया है. वहाँ इसे अंतिम मंज़ूरी मिलने के बाद ही समझौता लागू हो सकेगा.
अमरीकी विदेश उपमंत्री रिचर्ड बाउचर ने कहा है कि संसद के सामने एक मज़बूत दस्तावेज़ पेश किया गया है और आशा करनी चाहिए कि कांग्रेस इसे मंज़ूरी देने के लिए समय निकालेगी.
राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने भी बयान जारी करके उम्मीद जताई है कि कांग्रेस इसे इसी सत्र में पारित कर देगी.
अमरीकी संसद का सत्रावसान 26 सितंबर को हो रहा है और बुश प्रशासन को अमरीकी सांसदों को राज़ी करना होगा कि वे सत्रावसान से पहले ही इस समझौते को मंज़ूरी दे दें.
हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री को 25 सितंबर को व्हाइट हाउस पहुँचने का आमंत्रण दिया है. इसे संकेत के रुप में देखा जा रहा है कि उस दिन तक संसद से समझौते को मंज़ूरी मिल जाएगी और दोनों नेता समझौते पर अंतिम हस्ताक्षर कर सकेंगे.
राष्ट्रपति बुश और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए इससे अच्छा प्रतीक कुछ नहीं हो सकता कि दोनों टेलीविज़न कैमरों के सामने इस समझौते पर हस्ताक्षर करें.
लेकिन इस समय कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि यह समझौता इसी सत्र में पारित हो जाएगा क्योंकि वहाँ इस समय राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी चल रही है और वक़्त बहुत कम है.
मंज़ूरी की उम्मीद
अमरीकी उपविदेशमंत्री रिचर्ड बाउचर ने कहा है कि भारत-अमरीका असैन्य परमाणु समझौते का जो दस्तावेज़ संसद में पेश किया गया है वह एक मज़बूत दस्तावेज़ है.
उन्होंने कहा, "हमें अंदाज़ा है कि संसद के पास समय काफ़ी कम है और उसके सामने करने को बहुत से काम हैं लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि संसद किसी तरह इसके लिए समय निकालेंगे."
अमूमन ऐसे समझौतों को पारित करने के लिए 30 दिनों का सत्र बुलाए जाने की ज़रूरत होती है. लेकिन 26 सितंबर को सत्रावसान हो रहा है इसलिए ऐसे सत्र की संभावना ही नहीं है.
इसलिए संसद को इससे पहले ही इस समझौते को मंज़ूरी देनी होगी.
'50-50'
मुझे ख़ुशी है कि राष्ट्रपति बुश ने यह समझौता कांग्रेस में पेश कर दिया है और मैं अगले हफ़्ते ही इसे बहस के लिए रखूँगा

जो बाइडन, विदेशी मामलों की समिति के चेयरमैन
इस समझौते को संसद में पेश किए जाने के बाद कई सांसदों का बयान आया है.
सबसे अहम प्रतिक्रिया रही सीनेट के मेजॉरिटी लीडर हैरी रीड ने अपने बयान में कहा है कि वे यह देखेंगे कि क्या इस समझौते को इसी साल पारित किए जाने की कोई गुंजाइश है.
दूसरा अहम बयान आया है सीनेट में विदेशी मामलों की समिति के चेयरमैन जो बाइडन का, जो डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे ख़ुशी है कि राष्ट्रपति बुश ने यह समझौता कांग्रेस में पेश कर दिया है और मैं अगले हफ़्ते ही इसे बहस के लिए रखूँगा."
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बयान आया है जिम मैक्डर्मक का. वे इस समझौते के हक़ में है और इस पर काफ़ी काम कर चुके हैं.
उनका कहना है कि वे इसके इस साल पारित होने की संभावना फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी यानी 50 प्रतिशत देखते हैं.
उनका तर्क था, "जिस तरह भारत में चुनाव के समय सब कुछ ठप्प हो जाता है इसी तरह यहाँ भी राष्ट्रपति चुनाव होता है."
इस बात की पूरी संभावना है कि इसी सत्र में इसे पारित कर दिया जाए क्योंकि रिपब्लिकन पूरी तरह से इसके साथ हैं और डेमोक्रेट भी भारत के साथ इस समझौते को तोड़ना नहीं चाहेंगे

अनुपम श्रीवास्तव
जिम मैक्डर्मक का कहना था कि इस समझौते को बंदूक की गोली की तरह से पास नहीं कर सकते.
कई और कांग्रेस सदस्य कह रहे हैं कि वे इस समझौते का महत्व समझते हैं.
संभावना
ग़ौरतलब है कि भारत-अमरीका परमाणु समझौते को परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह की मंज़ूरी मिलने के बाद अब सिर्फ़ अमरीकी कांग्रेस से भारत-अमरीका परमाणु समझौते को अंतिम मंज़ूरी मिलनी बाक़ी है.
भारत-अमरीका के बीच हुए 123 समझौते पर अमरीकी संसद को हरी झंडी देनी होगी, उसके बाद ही ये समझौता प्रभावी हो पाएगा.
जॉर्जिया विश्वविद्यालय में एशिया कार्यक्रम के निदेशक अनुपम श्रीवास्तव का मानना है कि इस बात की पूरी संभावना है कि इसी सत्र में इसे पारित कर दिया जाए क्योंकि रिपब्लिकन पूरी तरह से इसके साथ हैं और डेमोक्रेट भी भारत के साथ इस समझौते को तोड़ना नहीं चाहेंगे.
उनका मानना है कि अगर डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य इसे रोकने की कोशिश भी करेंगे तो उन्हें अपने ही उद्योग जगत के दबाव का सामना करना पड़ेगा.
उद्योग जगत का तर्क होगा कि भारत के लिए परमाणु ईधन का रास्ता साफ़ तो करवाया अमरीका ने पर इसका लाभ रूस और फ्रांस जैसे देशों को मिल रहा है, अमरीका को नहीं.

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